सिराहा । महिला उपर होबबला हिंसाके महिला हिंसा कहल जाइछै। इ सामान्यतया पुरुषसबद्वारा बेसी होइछै मुदा महिलोसब महिलापर हिंसा करैत सेहो उदाहरणसब पर्याप्त छै। अपनासभक समाजमे अनेको कारण सँ महिला हिंसा भरहल छै। कहियो बेटीके दहेज खातिर मारल जाइछै, कहियो डायन कहिक अभद्र व्यवहार करल जाइछै। इ दुटा उदाहरण मात्र भेल, एहन हिंसासब बहुत छै। आखिर कतेक दिनतक सामाजिक कठघरामे ठार रहतै महिला? कहियाधरी दिय परतै अग्नि परीक्षा?
जखन किनको घरमे धियापुता जन्म लैछै तखन ओकरा सँ इ प्रश्न अवश्य पुछल जाइछै जे बेटी भेल कि बेटा? मुदा अपेक्षा सदैत बेटा होए से रहैछै। बेटा भेलापर होबबला खुशी प्राकृतिक होइछै मुदा बेटी भेलापर देखाबटी खुशी प्रदर्शन करबाक बाध्यता सेहो रहैछै। सामान्यतया छठिहारक भोजमे सेहो अन्तर होइछै: जखन बेटा जन्मैछै त माउस-माछ आ बेटी जन्मछै त कोनो सस्ता खाना। आब जखन बेटी स्कुल जायव योग्य भजाइछै तहु ठाम विभेद सुरु भजाइछै। समाजक अधिकतर व्यक्तिसभ बेटीके 'पराया धन' कहिक समबोधन करैछै। जाही कारण सँ बेटी मे किछ कम लगानी होएबाक चाहिँ से मान्यता रहैछै। बेटीके सरकारी स्कुल आ बेटाके बोर्डिङ स्कुलमे भर्ना कराबल जाइछै। आब स्कुलमे सेहो लड्का-लड्की एकही ठाम नहि बसिसकैय। एतबेक नहि लड्का साथीसभ आ स्वयं गुरुजीद्वारा सेहो दुर्ववहारके पात्र बनी जाइछै लड्की।

लगभग कक्षा-८ व ९ मे पहुँचलापर सुरु भजाइछै ईश्वरक आतंक, सुरु भजाइछै महिनावारी। आब महिलासभके इ नियमित चक्र बनी जाइछै। यहि समयमे होबबला पीडा एकटा महिलेटा बुझिसकैय। एखन महिलासभ किशोर अवस्थामे रहैछै। किशोर अवस्था आँधी बिहाइरक अवस्था होइछै। यौन आर्कषण, शारीरिक विकास व अन्य विकाससभ एहि उमेरमे होइछै। आब खतरा होइछै बलात्कार, दुर्ववहार, बेचविखन, यौन शोषण, प्रेम जालमे फसेनाइ इत्यादिके। यहि उमेरमे एहन बहुत घटनासभ सुनबामे आबैछै। आब घरक गारजियनके इ बातक चिन्ता होब लगैछै जे हमर बेटी किनको सँग भागि नहि जाय, हमर नाक नहि कटाबै। आब ओकर पढाई-लिखाइ ओतै बन्द कदेल जाइछै आ बहुत कम उमेरमे ओकर बियाह भजाइछै। फेरु सुरु होइछै आतंक। एतेक छोट उमेरमे बियाह भेला सँ ओकरा परिवार कि छियै? जिम्मेवारी कि होइछै? ककरा सँ कोन तरहक व्यवहार करबाक चाहिँ? इ सब कोनो बातक ज्ञान नहि रहैछै। बियाहमे कम दहेक सेहो ओकर मृत्युुक कारण बनी जाइछै। निन्तर माइरपिट, गाइरह परहापरही इ बातसभके आदत भजाइछै। छोट उमेरमे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व सम्वेगात्मक विकास बहुत कम भेल रहैछै। इ सभ कारण सँ ओकर जीवन नर्क समान भजाइछै। आब एहन अवस्थामे जखन ओ गर्भवती भजाइछै त बच्चा जन्मैत काल कि त ओकर मृत्यु अथवा शारीरिक रुप सँ अशक्त भजाइछै वा बच्चा कमजोर अथव बच्चाके मृत्यु सेहो भजाइछै। घरमे खाना बनी जाइछै त सब सँ पहिले पुरुषसभके खिएबाक परम्परा छै। अहुठाम महिला पछुवा जाइछै। अन्तिममे सेरेलहा खाना रहैछै त खाइछै नइ त भुखले रह परैछै। घरक सम्पुर्ण काज महिला करैछै मुदा अधिकार लेब बेरमे सदैत पछुवा जाइछै। कि महिला पुरुष बराबर काज नहि क'सकैय? बिल्कुल क'सकैय मुदा आवश्यकता छै मौका के।

हरेक क्षेत्रमे, हरेक ठाम महिलासभके कुदृष्टी सँ देखबला लोकसभ बहुत रहैछै। सामाजिक संजालपर सेहो महिलासभके अपरचित व्यक्तिसभ सँ मैसेज-कल सब आबैत रहैत। एकटा खेलौना जखा प्रयोगमे आबबला सामान भगेल अछि महिला। महिलासभ अशिक्षित सँ मात्र नहि शिक्षितसभ सँ सेहो हिंसाके सिकार बनी जाइछै। इ पुरुष प्रधान दुनियाँमे महिलाके पुर्णरुपस स्वतन्त्र भक जियबाक अधिकार कहिया प्राप्त हेतै?

हे ईश्वर! कि त सबटा अधिकार दिलादिय, कि महिलाके सृजन नहि करु। महिलाके आवश्यकता नहि अछी त किया करैछी महिलाके सृजन?